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Meta Description“अजनबी चेहरे की परछाई” एक गहरी हिंदी कविता है जो आधुनिक रिश्तों, आत्मिक प्रेम, और दिखावे की दुनिया में खोई संवेदनाओं की सच्चाई को उजागर करती है।---Keywordsअजनबी चेहरे की परछाई, हिंदी कविता, प्रेम और दर्शन, आत्मिक संबंध, आधुनिक प्रेम, अस्तित्ववाद, हिंदी साहित्य, माया बनाम हक़ीक़त---Hashtags#हिंदीकविता #प्रेम #दर्शन #अजनबीचेहरा #माया #आत्मिकसंबंध #हिंदीसाहित्य #कविताविश्लेषण #LoveInPhilosophy #PoeticSoul

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शीर्षक: “अजनबी चेहरे की परछाई” (The Shadow of an Unknown Face) --- कविता मुझे प्यार नहीं है इस तस्वीर से, क्योंकि तुम भी तो अजनबी हो, जब आती हो, फिर चली जाती हो, छोड़ जाती हो बस धुंधली पहचान। तेरे चेहरे में कोई भाव नहीं, तेरी आँखों में नहीं अपनापन, शायद तू हक़ीक़त नहीं, बस एक पलभर का ख़्वाब है। मैं ढूंढता हूँ सच्चा स्पर्श, जो वक़्त के साथ मुरझाए नहीं, पर तेरी ये तस्वीर — सिर्फ़ रंगों और सायों का खेल है। मैं इसलिए मोहब्बत न कर सका, उस तस्वीर से जो जानती नहीं रूह की ज़ुबान, जो आती है और चली जाती है, जैसे कोई ख़ामोश मुसाफ़िर बेनाम। --- विश्लेषण और दर्शन यह कविता आधुनिक इंसान की उस भावनात्मक दूरी को दर्शाती है जहाँ चेहरों की पहचान है, पर आत्मा की नहीं। कवि का कहना — “मुझे प्यार नहीं है इस तस्वीर से, क्योंकि तुम भी तो अजनबी हो” — यह बताता है कि आज का इंसान अपने आसपास के लोगों से जुड़कर भी उनसे अनजान है। तस्वीर यहाँ एक प्रतीक है — बाहरी दिखावे और अस्थायी संबंधों का। यह हमारी उस दुनिया का चित्र है जहाँ लोग एक-दूसरे को जानते हैं, पर महसूस नहीं करते। “जब आती हो, फिर चली जाती हो” — य...